फिर भी ….
मेरी नज़रों का धोखा है
मुझे फिर भी गुज़रने दो
तुम्हारी बात सोची है
मुझे फिर से सँवरने दो !
तुम्हे क्या याद है वो दिन
तुम्हे जब हमने देखा था
नज़र का फ़ासला था पर
तुम्हे दिल में समेटा था
गुज़रे हों साल कितने भी
मुझे फिर भी ठहरने दो !
तुम्हारी बात सोची है
मुझे फिर से सँवरने दो !
हमारी ज़िन्दगी क्या है
तुम्हारे बिन ये जाना है
तुम्हें हम याद करते हैं
तुम्हे अपना जो माना है
ज़माने की निगाहों में
मुझे फिर भी मुकरने दो !!
तुम्हारी बात सोची है
मुझे फिर से सँवरने दो !
मेरी नज़रों का धोखा है
मुझे फिर भी गुज़रने दो
तुम्हारी बात सोची है
मुझे फिर से सँवरने दो !
रवि शर्मा
अहमदाबाद ; १७ जून २०११