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यूँ ही मल रहे हो तुम अपने हाथों को ,
या भुला रहे हो बीती हुई बातों को ,
क्या गुज़री हुई यादों को निभा रहे हो ,
या मुझे हाथों की लकीरों से मिटा रहे हो ??

कहा है गए वक़्त को बुलाना नहीं अच्छा ,
पुरानी गई बातों को दोहराना नहीं अच्छा ,
फिर क्यूँ देखते हो मुड़ मुड़ के कहीं दूर ,
या फिर अपने आप को यूँ ही सता रहे हो ?

या मुझे हाथों की लकीरों से मिटा रहे हो ??

याद है मुझे कि मैं था तुम्हारी किस्मत ,
पर किया तुमने मुझे रिश्ते से रुखसत ,
मैं जब जा चूका हूँ दूर कहीं वक़्त से ,
फिर क्यूँ अब तुम वो रिश्ता निभा रहे हो ?

या मुझे हाथों की लकीरों से मिटा रहे हो ??

ना मैं हुआ तुम्हारा न तुम ही बने मेरे ,
थे दोनों साथ हम पर फासले थे बहुतेरे ,
फ़ासलों को नापना तुमने नहीं था चाहा ,
फिर क्यूँ अब आंसुओं में बहे जा रहे हो ?

या मुझे हाथों की लकीरों से मिटा रहे हो ??

रवि ; अहमदाबाद , २१ सितम्बर २०१०.