करके ख़ुद को दिल के हवाले , दी उसने क़ुर्बानी है ,
इश्क़ में डूबी उसकी नज़र , लगती हर बार रूहानी है !

सीने पे झेली है जब भी , दुनिया की मँझधार ये मैंने ,
तब तब याद आयी बचपन की , माँ की कोई कहानी है !

आँखों से जो पिघले आँसू , जा पहुँचे उनकी जु़बाँ तक ,
बात मरने की अपनी मैंने , सुनी ख़ुद उनकी ज़ुबानी है !

जब जब आँखों में हैं उतरे , मंज़र गुज़रे सालों के ,
तब तब बचपन की मुझको , लगती हर बात सुहानी है !

मैं सुलगूँ इस दुनिया में , या फिर मैं हो जाऊँ दफ़न ,
फ़र्क़़ तुम्हें लगता हो शायद , पर मेरे लिये बेमानी है !

रवि ; दिल्ली ; १४ जुलाई २०१३