बस वक़्त की फिराक़ में ज़िंदगी निकल गयी ,
बात छुपाई हर हाल में पर ज़ुबंा फिसल गयी ,
किया क्या ना हमने और कितना पुकारा उन्हे ,
पर बह चुकी वफ़ा में उनकी निगाह बदल गयी !

रवि ; ऍठलाण्ठा : २९ सितम्बर २०१२