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जाड़ों की कीड़कीड़ती ठण्ड में
इस रात के सन्नाटे में
लगता है की कोई आया है !
कहीं ये मेरा वहम तो नहीं ?
लेकिन ये नहीं हो सकता क्योंकि
किसी ने दरवाज़ा खटखटाया है !
पहले सोचा , होगा कोई जाने दो
लेकिन फिर …
दरवाज़ा खोलने का ख्याल
मेरे दिल में भर आया है !
खोला दरवाज़ा तो देखा –
एक अनजाना था , बोला
मैं नव वर्ष हूँ !
तुम्हारे पास आया हूँ !
तुमसे कुछ समझने
और समझाने आया हूँ !
नयी उमंगें , नये सपने , नयी आशाएं
और नव जीवन सन्देश लाया हूँ !
नया वर्ष हूँ
तुम्हारे पास आया हूँ !!

रवि ; रुड़की : जनवरी १९८०