नज़रों में छुपाये फिरते हो ,
सीने से लगाये फिरते हो ,
उन भूली बिखरी यादों को ,
क्यूँ दिल में बसाये फिरते हो !

नज़रों में छुपाये ़़…..

कितने हैं सावन बीते मगर ,
फिर भी बूँदों का नाम नहीं ,
जानकर इस बात को भी ,
क्यूँ ख़्वाब सजाये फिरते हो !

नज़रों में छुपाये …..

क्यूँ याद रहें वो बातें उन्हे ,
जो उनके दिल की बात नहीं ,
उन एकतरफ़ा बीती बातों का ,
क्यूँ बोझ उठाये फिरते हो !

नज़रों में छुपाये ……..

तुम्हे अपना जिसने कहा नहीं ,
दर्द बिरह का सहा नहीं ,
एक ऐसे बेगाने हमदम को ,
क्यूँ अपना बताये फिरते हो !

नज़रों में छुपाये ……

है भूलना बेहतर टूटा कल ,
वो दर्द तुम्हारा बीता पल ,
अपनी आँखों के आँसू तुम ,
क्यूँ बेकार बहाये फिरते हो !

नज़रों में छुपाये …….

देख रहे सब तुमको यहाँ ,
पर नज़र तुम्हारी सूनी है ,
उठ जाओ फिर मुस्काओ तुम ,
क्यूँ मातम मनाये फिरते हो !

नज़रों में छुपाये …..

चलो दूर अभी जाना है ,
तुमको तो सबको हँसाना है ,
छोड़ो उन अाधे सपनों को ,
क्यूँ ख़ुद को सताये फिरते हो !

नज़रों में छुपाये …….

रवि ; दिल्ली : २८ जनवरी २०१३