वायु के प्रहार में भी,
ओस की फुहार में भी,
वो राह पे चलता रहा,
दिया मेरा जलता रहा !

बाती उसकी चुक रही,
झंझावत देह दुख रही,
पर तम से लड़ता रहा,
दिया मेरा जलता रहा !

धरा का वो रूप था,
सृष्टि का स्वरूप था,
अग्नि से खिलता रहा,
दिया मेरा जलता रहा !

नींद में वो स्वप्न सा,
सत्य में वो नग्न सा,
संास सा चलता रहा,
दिया मेरा जलता रहा !

साहस का ये चिन्ह रहा,
कायरता से भिन्न रहा,
अमरत्व में मिलता रहा,
दिया मेरा जलता रहा !

धरती से आकाश तक,
मेरी अन्तिम श्वास तक,
जीवन वो भरता रहा,
दिया मेरा जलता रहा !!

रवि ; दिल्ली : ११ नवम्बर २०१२