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तुझे पाने की ख़्वाहिश में , ख़ुद से ख़ुद को खोता हूँ ,
खुली आँखों में उगते जो , मैं वो सारे ख़्वाब बोता हूँ !

मैं तुझसे दूर हूँ लेकिन , तेरी आहों में रहता हूँ ,
तेरी यादों के साये में , कभी मैं ख़ूब रोता हूँ !

चाहत के फ़साने में , क्या ज़्यादा क्या कम है ,
तू सपनों में बुलाती है , मैं आँखों में ही होता हूँ !

कभी ग़र याद धुँधली हो , पलों को ढूँढना मुश्किल ,
तब यादों के वो पैमाने , मैं ख़ुद अश्क़ों से धोता हूँ !

कभी तेरा तसव्वुर हो , और तू भी उसमें डूबी हो ,
ले तब होठों पर मुस्कान , मैं मीठी नींद सोता हूँ !

रवि ; दिल्ली : १८ अक्टूबर २०१३