…. जवाब !!
ना ज़िन्दगी में कुछ भी , बेहिसाब होता है ,
हर ग़लती की सज़ा का , हिसाब होता है !
जो दे सके हर हाल में , इस जहाँ को रोशनी ,
कम नहीं ग़र एक भी , आफ़ताब होता है !
चाहे सुनाये ताने कितने , दुनिया उसके दाग़ पर ,
फिर भी जो देता चाँदनी , मेहताब होता है !
मौसम सुहाना ग़र तो , खिल सके हैं सब यहाँ ,
काँटों में जो खिल जाये , वो गुलाब होता है !
करे ज़ुल्म कितने कोई , ताक़त की कमान पर ,
बेआवाज़ खुदा की लाठी का , जवाब होता है !
रवि ; दिल्ली : २८ जुलाई २०१३