आँखो पे तेरी काजल का पहरा है ,
होठों पे तेरे गुलाबों का सेहरा है ,
बदन की हिफाज़त में है ख़ुशबू तेरी ,
हुस्न तेरे सामने क्या कभी ठहरा है ?

क़दमों से तेरे है सावन की मस्ती ,
नज़रों में तेरी सारी दुनिया की बस्ती ,
तेरे आने से होती महफ़िल में रौनक़ ,
तेरी चाहत में हर ख़्वाब सुनहरा है ।

आँखो पे तेरी काजल का पहरा है ़़़़़…..

रवि : दिल्ली ; ९ दिसम्बर २०१२