क़िस्मत … !!
इश्क़ से गुज़रा हूँ मैं , इश्क़ को मैं जानता हूँ ,
रग़ों में बहता है ये , रग़ इसकी मैं पहचानता हूँ !
फूलों की दिखती सेज ये , कहते हैं ये सब यहाँ ,
पर ये काँटों पे बिछी , मैं ये हक़ीक़त मानता हूँ !
प्यार की रंगीनियाँ , दिल पे छा जाती हैं जब ,
दिखता सब रंगीन तब , सच मैं इसको मानता हूँ !
जुगनू आँखों में कभी , कभी अश्क़ की भरमार है ,
पल में बदले रुख़ यहाँ , पल का मौसम मानता हूँ !
ये इश्क़ है ऐसी बला , इसे चाहता हर दिल यहाँ ,
हो जुदाई या मिलन , मैं इसको क़िस्मत मानता हूँ !
रवि ; दिल्ली : १२ अक्टूबर २०१३