हमने नगमें गुनगुनाने की , क़सम खायी है ,
ज़िन्दगी भर मुस्कुराने की , क़सम खायी है !

दी किसी ने चोट या , दिया हो धोखा कभी ,
हमने तो सभी वो भुलाने की , क़सम खायी है !

दी बड़ों ने जो दुआयें , और दोस्तों ने प्यार ,
उसे ना ज़िन्दगी में गवाँने की , क़सम खायी है !

कैसे करूँ ख़ुदा शुक्रिया , कितना बख्शा यहाँ ,
नेमत को सवाब में लुटाने की , क़सम खायी है !

कोई बड़ा बने ऊँचा बने , क्या क्या बने यहाँ ,
मैंने तो इंसान ही बन पाने की , क़सम खायी है !

रवि ; दिल्ली : ८ अक्टूबर २०१३