दुनिया हमसे हारी और अब सारे मित्र भी हारे ,
अब कविता भी हारी हमसे बस हम ही ना हारे,
कहाँ से लायें श्रोता प्रतिदिन फिरते हैं मारे मारे,
बस एक दिल ही है सुनता और मेरे कान बेचारे !!