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इन रिश्तों को बाँधते हैं ये , मासूमियत के धागे ,
दिलों को साथ रखते हैं ये , अपनायत के धागे ,
इन्हीं धागों से बन्धती हैं , हमारी ख़ुशियाँ सारी ,
कभी कच्चे कभी पक्के ये , इन्सानियत के धागे !

रवि ; दिल्ली : २१ अगस्त २०१३