ओस !!
दुनिया की उलझी बातों को , मन में सुलझाता हूँ मैं ,
ज़ुल्फ़ों के साये में तेरे , ख़्वाबों में खो जाता हूँ मैं !
ज़ख़्म दिये अपनों ने इतने , छलनी मेरा सीना है ,
पर तेरी आँखों की ख़ातिर , हर दम मुसकाता हूँ मैं !
मौसम सूखा रिश्ते सूखे , सूखे हैं हालात मेरे ,
पर तेरे होठों की मस्ती , पे यूँ इतराता हूँ मैं !
मैं हूँ तेरा तू है मेरी , ये दोनों का वादा है ,
फिर क्यूँ बीती रात गये , मन में घबराता हूँ मैं !
टूटे जाने कितने तारे , हाथों की लकीरों में ,
फिर भी ओस की बूँदों को , होठों से सहलाता हूँ मैं !
रवि ; दिल्ली : १२ जुलाई २०१३