एक टूटी अभिलाषा !
नहीं शेष अब कोई आशा
मेरा जीवन
एक टूटी अभिलाषा !
आँखों के आंसू हैं सूखे
इन पुष्पों की पंखुडियां भी
आशा की कड़ियाँ हैं टूटी
उन सपनों की लड़ियाँ भी
जीवन में बस शेष निराशा !
मेरा जीवन
एक टूटी अभिलाषा !
सावन की रिमझिम है फीकी
इस इन्द्रधनुष के रंग भी
सपनों ने अब साथ है छोड़ा
नहीं आज कोई मेरे संग भी
नहीं देता कोई मुझे दिलासा !
मेरा जीवन
एक टूटी अभिलाषा !!
रवि ; रुड़की १९८२