उम्मीद ? August 23 2012| 0 comments | Category : Poetry , Shayari वो ख़्वाबों के सारे महल ढह गए , हसरतें ही बचीं ज़िन्दगी के लिए , अब जीने की कोई उमंगें नहीं , ज़िन्दगी भी नहीं ज़िन्दगी के लिए ! रवि ; लखनऊ : मार्च १९८०