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हसीनों को आईने पर , कहाँ होता है ऐतबार ,
कहते हैं चुराता है हुस्न , उसे दिखाने से पहले !

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दिल के आईने में ख़याल की बातें ना बता ,
वो तो पागल है हसीनों पे फिसल जाता है !

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कहते हैं ये आइना मेरे दो अक्स बनाता है ,
इक देता मुझे एक मेरे प्यार को दे आता है !

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आईने ने सामने से सलाम उन्हें भेजा है ,
उन्हीं की आँखों का कलाम उन्हे भेजा है !

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अपनी आँखों का सच भी ना कभी दिखा होता ,
ग़र ना अक्स उनका हमें आइने में दिखा होता !

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तोड़ देते आईना तो शिकायत न थी ,
वो आपके इंतज़ार में यूँ ही पिघल गया !

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रवि ; दिल्ली : ११ अक्टूबर २०१३