असर !
अब आप दिल में समाने लगे हैं ,
हम सपनों में भी मुस्कुराने लगे हैं !
अब तनहाईयां कभी पास आती नहीं ,
हम अकेले में भी गुनगुनानें लगे हैं !
आपकी चाहत बनी है ज़िन्दगी हमारी ,
हम वीरानों में भी गुल खिलाने लगे हैं !
देखा जब से मैंने अक्स उन आँखों में ,
हम भी अपने इश्क़ पे इतराने लगे हैं !
रवि ; दिल्ली : ३१ अक्टूबर २०१२