तेरी आँखों से निकले , आँसू भी पैग़ाम देते हैं ,
मेरी तनहाई का दामन , चुपके से थाम लेते हैं !

ढलकता हो तेरा आँचल , या तेरी ज़ुल्फ़ के साये ,
तेरे अन्दाज़ से ही तुझको , हम पहचान लेते हैं !

तेरा मुस्काना कुछ ऐसा , जहाँ के ग़म मिटा दे वो ,
तेरे होठों की मस्ती पे , जहाँ क़ुर्बान देते हैं !

तेरा कहना मुझे वो फिर , पलट के फिर नहीं आना ,
तेरे सदक़े में बैठे हैं , जो तुझपे जान देते हैं !

तेरी तक़दीर थी शायद , जो पहचान ना पायी ,
वरना सबको ना हम ये , प्यार का अरमान देते हैं !

रवि ; दिल्ली : २३ अगस्त २०१३