10339749_10205594589738393_218671790290754984_n

जब भी कोई मंज़िल या कोई मुक़ाम आया ,
ज़ुबान पर मेरी बस तेरा ही इक नाम आया !

जब कभी फूल मिला राहों में पेड़ों के तले ,
यूँ लगा मुझको कि तेरा मुझे पैग़ाम आया !

ख़ुशबू आ जाती है ख़्वाबों में आने से तेरे ,
जो तू मुस्काये लगे सजदे का इनाम आया !

अब तो आ जाओ तुम ख़्वाबों से बाँहों में मेरी ,
दिल के मैख़ाने का अब आख़िरी ये जाम आया !

तारे लाखों खिलें रातों को आसमां में तो क्या ,
मगर इक चाँद के खिलने से ही आराम आया !