उस रात

प्यार की हद से परे

सपनों की तनहाई से

तुमने ही

मुझे जगाया था

उस काली , अँधेरी

तूफानी रात में भी

तुमने ही

प्यार का दीप जलाया था

और सचमुच

एक किरण जागी थी

प्यार की !

और फिर

मैंने चाह था

कुछ कहना तुमसे !

मगर अचानक

तभी

एक सितारा टूटा

और

मैं रूक गया ,

फिर

टूटते सितारों से

आसमान भर गया

और मैं चुप रहा ,

फिर

टूटते सितारों की रात

तब्दील हो गयी

एक सुबह में

लेकिन

मैं कुछ ना कह सका !

मेरी बात

बनके बात रह गयी

एक आधी अधूरी बात !

काश , पूरी ना होती

वो काली , स्याह , अँधेरी , अधूरी रात ! !

रवि ; रुड़की : नवम्बर 1982