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ना जाने वो कैसी नज़र देखते हैं ,
हम तो बस उनकी नज़र देखते हैं ,
नज़र की नज़र से हजारों ये बातें ,
नज़र का नज़र पे असर देखते हैं !

ना जाने …..

नज़र का ये उनका मिलाना तो देखो ,
मिला के नज़र का झुकाना तो देखो ,
नज़र को नज़र से चुराते हुए भी ,
शराफ़त की वो एक नज़र देखते हैं !

ना जाने ….

रवि ; रुड़की : मई १९८१