तू ज़िन्दगी में मेरी , कुछ इस तरह से आई है ,
ख़्वाब से आस तक , हर पल में तू ही छाई है !

तेरी सूरत आँखों में , कुछ इस क़दर समाई है ,
कि चेहरे पे मेरे तेरी , अब दिखती परछांई है !

तू मुस्कुरा के चल दी , जैसे ही हमको देखा ,
तेरी तो अदा ठहरी , मेरी जान निकल आई है !

बस मैं तो एक क़तरा हूँ , कैसे ना डूब जाता ,
समंदर से तेरी ज़्यादा , आँखों की गहराई है !

हिचकी क्यूँ ना रूकती , दिन रातों को मेरी ,
मेरा तसव्वुर है ये , या याद तुझको आई है !

रवि ; दिल्ली : २ अक्टूबर २०१३