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प्यार की तनहाई से ,
यौवन के उपवन तक ,
सपनों के आँचल से ,
सुधियों के बंधन तक ,
तुमसे ही पूछता हूँ मैं – ऐ मेरे हमक़दम !
क्या तुम मेरे साथ हो ??

रवि ; रुड़की : अक्टूबर १९८१