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बस इक लम्हा , तेरी ख़ुशबू का , गुज़ारा हमने ,
ज़िन्दगी भर उसे , फिर दिल में , संवारा हमने !

जब भी यादों ने , ख़्वाबों से , जगाया है हमें ,
ले के होंठों पे , हँसी तुमको , पुकारा हमने !

कोई कहता हमें , पागल तो , दीवाना भी कोई ,
किया दुनिया का , यूँ हँसना भी , गंवारा हमने !

वक़्त चलता गया , पानी के , नज़ारों की तरह ,
चाहे कितना किया , कश्ती से , किनारा हमने !

याद है शाम वो , ठहरी तेरी , पहली वो नज़र ,
तब से खोया है , हर इक साँस , हमारा हमने !

रवि ; दिल्ली : २१ जून २०१४