जब दुनिया से जाने की , मेरी बात हुई ,
तब चीज़ों की गिनती की , शुरूआत हुई !

क्या जोड़ा है और क्या , तुमने बोया ,
आस की मेरी नाप तौल में , यूँ मात हुई !

रूक जाते कुछ और , और कुछ देके जाते ,
अभी थोड़ी अपनी दुनिया में , औक़ात हुई !

ना जाओ हमें छोड़ , प्यार है हमको तुमसे ,
इन लफ़्जों की ना कानों से , मुलाक़ात हुई !

दिन बीते ज़िन्दगी के , बरस कितने बीते ,
पर आज खुले हैं रिश्ते जब , ये रात हुई !

रवि ; दिल्ली : १९ जुलाई २०१३