1476106_10201916243782043_267686232_n

मेरी दुनिया के मालिक तूने , दुनिया क्या बनाई है ,
कहीं पर ग़म के मेले हैं , कहीं बजती शहनाई है !

कहीं इज़्ज़त है माथे पे , कहीं उसके लुटेरे हैं ,
कहीं मजबूर औरत ने , ख़ुद इज़्ज़त लुटाई है !

कहीं रोटी के फाँके हैं , कहीं है दूध नाली में ,
फ़र्क़ इंसा में क्यूँ इतना , क्यूँ क़िस्मत बनाई है !

कहीं बिखरे पसीने पे , ना मिलती है कौड़ी भी ,
कहीं लफ़्जों के खेलों ने , बड़ी दौलत कमाई है !

कहीं पर पाक़ इमान भी , ज़माने में पड़ा नीचे ,
कहीं नापाक़ दौलत ने , यहाँ पायी ऊँचाई है !

रवि ; दिल्ली : २२ दिसम्बर २०१३