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तुम ही हो मेरी अभिलाषा
मेरा जीवन हो
परिचय हो
तुम ही हो मेरी परिभाषा !

फिर भी पूछता हूँ तुमसे ही –
तुम कौन हो ?

तुम मेरे अंतर्मन की वेदना
मेरी साधना हो
कल्पना हो
तुम मेरे ह्रदय की प्रेरणा !

फिर भी पूछता हूँ तुमसे ही –
तुम कौन हो ?

मेरे सपनों की आस तुम
तुम प्रेम हो
सत्य हो
हो जीवन का विश्वास तुम !

फिर भी पूछता हूँ तुमसे ही –
तुम कौन हो ?

तुम हो जीवन दर्पण मेरा
मेरे ह्रदय की सांस तुम
होठों की मुस्कान तुम
सर्वस्व तुम्ही को अर्पण मेरा !

फिर भी पूछता हूँ तुमसे ही –
तुम कौन हो ?

वर्षों से तुम साथ मेरे
सुख में दुःख में
जीवन पथ में
तुम ही हो जीवन प्राण मेरे !

फिर भी पूछता हूँ तुमसे ही –
तुम कौन हो ?

हो रूप का अभिमान तुम
नव दृष्टि हो
नव सृष्टि हो
हो कृतज्ञता का मान तुम !

फिर भी पूछता हूँ तुमसे ही –
तुम कौन हो ?

तुम नव पुष्प का एक अंग
तुम सुन्दर हो
कोमल हो
स्पर्श से होता रूप भंग !

फिर भी पूछता हूँ तुमसे ही –
तुम कौन हो ?

चरों दिशाओं में हो तुम
तुम मेरे ह्रदय में हो
तुमको भुलाने का साहस कैसे कर पाऊंगा मैं
मेरी शिराओं में हो तुम !

फिर भी पूछता हूँ तुमसे ही –
तुम कौन हो ?

रवि ; रुड़की : १९८२