मेरी क़श्ती का , मुझे कोई , किनारा ना मिला ,
है फ़लक ढूंढा , मगर मेरा वो , तारा ना मिला !

खोया मैने चैन था , बस देख उसे , पहली नज़र ,
हैं बरस बीते , मगर चैन , दोबारा ना मिला !

मेरी क़िस्मत पे , रोज़ रोये हैं , कितने गुलज़ार ,
फिर भी आँसू , कोई रोके वो , सहारा ना मिला !

सोचा था रोते एक , हम ही हैं , इश्क़ के मारे ,
कोई मुस्काये ऐसा , इश्क़ का , मारा ना मिला !

मैं तो ज़िन्दा हूँ , समंदर में इक , सीपी की तरह ,
मगर मुझको कोई , मोती यहाँ , प्यारा ना मिला !

हमने माना था , अपने प्यार को , एक बन्दगी ,
ख़ुदा तो दूर , इक इश्क़ भी , हमारा ना मिला !

रवि ; दिल्ली : ६ सितम्बर २०१३