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बहुत मासूम दिल है ये , मगर क़िस्मत निराली है ,
बहुत सी भीड़ है दिखती , मगर दिल फिर भी ख़ाली है !

ख़ुदा जिसको बनाया था , उसी ने मुझको लूटा है ,
भरे बाज़ार में उसने , मेरी इज़्ज़त उछाली है !

अब कोई ना चाहत है , और ना ही उम्मीदें हैं ,
लकीर हमने वफ़ा की ख़ुद , हाथों से मिटा ली है !

तसव्वुर जब से टूटा है , तभी से मैने माना है ,
मेरी तस्वीर अब उसने , दिल से ही हटा ली है !

लगाई हम पे तोहमत है , उसे मालूम है लेकिन ,
उसी ने शक़ के शोलों से , ख़ुद दुनिया जला ली है !

रवि ; दिल्ली : १२ नवम्बर २०१३