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आज उनकी याद में , क्यूँ मैं इतना रोता हूँ ,
खोये बरस बहुत पहले , आज क्यूँ मैं खोता हूँ !

झूठीं थीं वो सांसे उनकी , आँहें भी वो झूठीं थीं ,
उनको सीने से लगा के , आज क्यूँ मैं सोता हूँ !

टूटे थे वो तारे सारे , आसमां भी सुर्ख़ था ,
ख़्वाब में उस आसमां को , आज क्यूँ मैं बोता हूँ !

मैली हैं वो यादें सारी , और निशाँ भी गहरे हैं ,
वक़्त के टूटे खण्डहर को , आज क्यूँ मैं ढोता हूँ !

दर्मियाँ हैं फ़ासले अब , फ़ासले भी स्याह हैं ,
क़ुर्बां फिर भी आशिक़ी पे , आज क्यूँ मैं होता हूँ !

रवि ; दिल्ली : ६ जुलाई २०१३