आस ! August 27 2012| 0 comments | Category : Kavita , Poetry सवेरे की आस में मैंने चांदनी को भुला दिया लेकिन कैसा सवेरा ? वहां तो केवल जलते सूरज की धूप थी ! रवि ; रुड़की : अक्टूबर १९८१