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हर पल एक प्यार की चाह में ,
इस दिल को बेक़रार मैंने देखा है !

एक एक पल उम्र से भी बड़ा था ,
एक ऐसा भी इंतज़ार मैंने देखा है !

जब भी सोचा है आपके बारे में ,
लगता है हसीं ख़्वाब मैंने देखा है !

में आपके और आप मेरे करीब थे ,
ये एक ख़्वाब बार बार मैंने देखा है !

और उन ख़्वाबों से उठकर देखने पे ,
दूर तक आपको ही जनाब मैंने देखा है !

शबनम को फूलों के आस पास देख ,
यूँ लगा आपको उदास मैंने देखा है !

नज़र मिलते ही आपसे कुछ यूँ लगा ,
आप नहीं एक आफताब मैंने देखा है !

आप नहीं तो फूलों से दुश्मनी सी थी ,
पर अब काँटों को खुशबूदार मैंने देखा है !

हर कली को संवारने वाले गुलज़ार का ,
वो एक लाजबाब शाहकार मैंने देखा है !

आपकी आँखों के इस गहरे समंदर में ,
आपने लिए प्यार ही प्यार मैंने देखा है !!

रवि ; रुड़की : १० मई १९८१